चीन से आयात ज्यादा और निर्यात कम होता है. यही नहीं चीन हमसे ज्यादातर कच्चा माल खरीदता है और हमें तैयार उत्पाद निर्यात करता है. सीमा पर तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई.
भारत से चीन का व्यापार सीमा पर
तनाव के बावजूद बढ़ता जा रहा है. इसमें गौर करने की बात यह है कि यह व्यापार पूरी
तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ है. चीन से आयात ज्यादा और निर्यात कम होता है.
यही नहीं चीन हमसे ज्यादातर कच्चा माल खरीदता है और हमें तैयार उत्पाद निर्यात
करता है. आइए जानते हैं कि यह असंतुलन किस तरह
का है और इसे लेकर क्यों चिंता जताई जा रही है?
सीमा पर तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई और यह 57.4 अरब डॉलर (करीब 4.28 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया.
यह कोविड के पहले के दौर में वर्ष 2020 की पहली छमाही में हुए 44.72 अरब डॉलर के व्यापार से भी ज्यादा
है.
यह बढ़त तब हुई जब भारत-चीन
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों में भारी तनाव रहा. चीन के जनरल
एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स (GAC) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि पहली छमाही के दौरान भारत के
चीन से आयात में 69.6
फीसदी और
निर्यात में 60.4
फीसदी की
बढ़त हुई है.
भारत का चीन को निर्यात साल 2020-21 में 1,57,201.56 करोड़ रुपये का था. दूसरी तरफ
भारत का चीन से आयात साल 2020-21
में 4,82,495. 79 करोड़ रुपये का था.
गौर करने वाली बात ये भी है कि
कोरोना काल में जब भारत का ओवरऑल इम्पोर्ट गिर रहा था, उस वक्त भी चीन से हो रहे
इम्पोर्ट का आंकड़ा बढ़ रहा था. सरकार के मुताबिक, अप्रैल-नवंबर 2020 के बीच भारत के टॉप 5 इम्पोर्ट पार्टनर में चीन, अमेरिका, UAE, हांगकांग और सऊदी अरब रहे हैं.
गौरतलब है कि पूरे साल 2020 में भारत का चीन से व्यापार 87.6 अरब डॉलर का था. इसमें करीब 66.7 अरब डॉलर चीन से भारत को आयात था. इसके पहले साल 2019 में भारत ने चीन से सबसे ज्यादा
इलेक्ट्रिक मशीनरी और इक्विपमेंट (20.17 अरब डॉलर) का आयात किया, इसके अलावा ऑर्गनिक केमिकल 8.39 अरब डॉलर, उर्वरक 1.67 अरब डॉलर भारत के शीर्ष आयात थे.
बदलाव की गुंजाइश कम
साल 2014-15 से 2019-20 के बीच के व्यापार के आंकड़े यह
दिखाते हैं कि भारत कम मूल्य के कच्चे माल का निर्यात करता है, जबकि हाई वैल्यू वाले
मैन्युफैक्चरिंग गुड्स का आयात करता है. दोनों देशों के बीच व्यापार में गहरी
असमानता है. साल 2019-20 के बीच भारत का चीन को औसत सालाना
निर्यात करीब 13
अरब डॉलर
का रहा है. इसी तरह इस बीच भारत का चीन से औसत आयात 66 अरब डॉलर का रहा.
भारत से चीन को मछलियां, मसाले जैसे खाद्य वस्तुओं से लेकर
लौह अयस्क,
ग्रेनाइट
स्टोन और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात होता है. दूसरी तरफ चीन से भारत को आयात
इलेक्ट्रिक मशीनरी,
इक्विपमेंट
और अन्य मेकैनिकल अप्लायंसेज का होता है. इसमें निकट भविष्य में बदलाव की गुंजाइश
भी कम दिख रही है.
इन चीजों का होता है
चीन को निर्यात
पिछले छह साल में भारत
से चीन का निर्यात मुख्य रूप से लौह अयस्क, पेट्रोलियम ईंधन, कार्बनिक रसायन, रिफाइंड कॉपर, कॉटन यार्न का हुआ. इसके अलावा निर्यात होने वाली खाद्य वस्तुओं में मछली एवं सी फूड, काली मिर्च, वनस्पति तेल, वसा आदि प्रमुख हैं. ग्रेनाइट ब्लॉक एवं अन्य बिल्डिंग
स्टोन और रॉ कॉटन का भी निर्यात हुआ.
आयात किन वस्तुओं का
पिछले छह साल से भारत
में चीन से आयात होने वाली प्रमुख वस्तुओं में ऑटोमेटिक डेटा प्रोसेसिंग मशीन एवं
यूनिट, टेलीफोन इक्विपमेंट और
वीडियो फोन, इलेक्ट्रॉनक सर्किट, ट्रांजिस्टर्स एवं सेमीकंडक्टर डिवाइस, एंटीबायोटिक्स, उर्वरक, साउंड रिकॉर्डिंग , डिवाइस और टीवी कैमरा, ऑटो कम्पोनेंट एवं एसेसरीज और प्रोजेक्ट गुड्स शामिल हैं.
कभी कॉपर कैथोड का
भारत शुद्ध रूप से चीन को निर्यातक हुआ करता था, लेकिन अब यह इसका आयातक हो चुका है. इसी तरह पिछले कुछ
वर्षो में कॉटन और कॉटन यार्न के निर्यात में भी गिरावट आई है. इसी तरह भारत बड़े
पैमाने पर दवाओं के लिए जरूरी कच्चे माल बल्क ड्रग और एक्टिव फार्मास्यूटिकल
इनग्रेडिएंट (API) का आयात भी चीन से
करता है. भारत की एपीआई जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा चीन से आता है. यहां तक की पैरासीटामाल जैसी दवा का एपीआई भी
चीन से आता है.
भारत अपनी घरेलू
जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर चीन से तैयार उत्पादों का आयात
करता है. उदाहरण के लिए भारत में जब टेलीकॉम क्रांति हुई तो इसके लिए जरूरी
टेलीकॉम इक्विपमेंट और मोबाइल फोन बड़े पैमाने पर चीन से आयात किए गए.
इलेक्ट्रॉनिक
हार्डवेयर बाजार में चीन हावी है और भारतीय उद्योग अभी शैशव अवस्था में ही है.
हालांकि भारत सरकार के प्रोत्साहन से अब देश में ही मोबाइल फोन के उत्पादन को
बढ़ावा मिला है, इस वजह से मोबाइल आयात
बिल में कमी आई है. भारत वैसे तो चीन को मुख्यत: कच्चा माल आपूर्ति करता है, लेकिन हाल के दिनों में कैंसर ड्रग, ऑटो कंपोनेंट और प्रोसेस्ड फूड का निर्यात बढ़ा है.
कई तरह की चिंताएं
चीन से व्यापारिक
असंतुलन का एक बड़ा नुकसान यह है कि भारत को बड़े पैमाने पर अपने विदेशी मुद्रा
भंडार का हिस्सा चीन को सौंपना पड़ रहा है. इसके अलावा चीन भारत से सस्ता कच्चा
माल खरीदता है और उनसे तैयार उत्पाद महंगे सामान को भारत में निर्यात करता है.
इससे वहां के कारोबारी अच्छी कमाई करते हैं और साथ में वहां के नौजवानों को बड़े
पैमाने पर रोजगार मिलता है.
कोरोना संकट और
भारत-चीन तनाव के बीच भी द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत
को बड़े पैमाने पर चीन से चिकित्सा से जुड़े सामान का आयात करना पड़ा है. इस साल
जनवरी से जून के दौरान भारत ने चीन से 26,000 वेंटिलेटर्स एवं ऑक्सीजन जनरेटर्स, 15,000 से ज्यादा मॉनिटर और 3,800 टन से ज्यादा दवाएं और
चिकित्सा के अन्य सामान मंगाए.
कोरोना संकट के बीच जब
चीन से एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) के आयात पर रोक लग गई तो भारतीय दवा उत्पादकों के हाथ-पांव फूल गए. भारतीय दवा
उत्पादकों की एपीआई जरूरत का करीब 80 फीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है. यहां तक पैरासीटामॉल जैसी सामान्य और
जरूरी दवा का एपीआई भी चीन से आता है. सोचिए कहीं यदि चीनी उत्पादकों ने तनाव के
माहौल आदि के बीच 2-3 महीने के लिए भी एपीआई
आयात रोक दिया तो भारत की क्या हालत होगी?
तो एक बड़ा खतरा यह भी
है कि कभी सीमा पर तनाव के बीच चीन व्यापार को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर
सकता है. वैसे तो चीन को भी भारत जैसे बड़े बाजार की सख्त जरूरत है, लेकिन जरूरी सामान के आयात को रोककर वह कुछ समय के लिए
मुश्किल तो खड़ी ही कर सकता है. भारत के लिए इस तरह से व्यापार में किसी एक देश पर
ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं है.
लौह अयस्क के आयात पर
भी चिंता
इस साल जनवरी से
अप्रैल के दौरान चीन ने भारत के कुल आयरन ओर उत्पादन का 90 फीसदी हिस्सा आयात कर लिया. इसे लेकर घरेलू स्टील
उत्पादकों ने चिंता भी जताई. उन्होंने लौह अयस्क के निर्यात पर अंकुश लगाने की
मांग की. चीन यहां का सस्ता लौह अयस्क उठा ले जा रहा है और उससे तैयार माल बनाकर
दुनिया भर में बेच रहा है. इससे भारतीय मैन्युफैक्चरर्स के लिए मुश्किल होती है, क्योंंकि उन्हें वाजिब दाम पर लौह अयस्क नहीं मिल पाता.
कुल मिलाकर यह कहा जा
सकता है कि चीन और भारत के व्यापार में काफी असंतुलन है जिसे दूर करने की जरूरत
है. ऐसा नहीं हुआ तो यह आगे चलकर भारत के लिए और नुकसानदेह साबित होगा. गौरतलब है
कि व्यापार में चीन दुनिया में सबसे आगे है. अंकटाड की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल
वैश्विक व्यापार में चीन का हिस्सा साल 2020 में सबसे ज्यादा 14.7 फीसदी था. इसके बाद
अमेरिका का हिस्सा 8.1 फीसदी था.