अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) जिन्हें मोदी ने अब कैबिनेट मंत्री बनाया है, वह पहले अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव भी रह चुके हैं.
मोदी कैबिनेट के विस्तार में
अश्विनी वैष्णव (Ashwini
Vaishnaw) एक चौंकाने
वाला नाम हैं. पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव को पीएम मोदी द्वारा रेल और सूचना
सूचना प्रौद्योगिकी जैसे अहम मंत्रालय देना उन पर किए गए भरोसे की गवाही देता है.
अश्विनी वैष्णव ने यह भरोसा बरसों काम करके कमाया है. अश्विनी वैष्णव जिन्हें मोदी
ने अब कैबिनेट मंत्री बनाया है, वह पहले अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव भी रह चुके हैं.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, राजस्थान के जोधपुर में पैदा हुए 51 वर्षीय वैष्णव 1994 बैच के ओडिशा कैडर के भारतीय
प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी रहे हैं.
ओडिशा में राज्यसभा चुनाव जीतकर सबको चौंकाया
दो साल पहले ओडिशा से बीजेपी के टिकट पर राज्यसभा का चुनाव जीत कर अश्विनी वैष्णव पहले भी लोगों को सरप्राइज कर चुके हैं. उनका वहां जीतना बड़ी बात इसलिए थी क्योंकि पार्टी के पास विधायकों की संख्या इतनी नहीं थी कि वह चुनाव जीत सकें. बीजेपी में होने के बावजूद उन्होंने राज्यसभा चुनाव में ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक का समर्थन हासिल कर लिया. बीजेडी के भीतर कई नेताओं ने इसकी आलोचना की थी. आरोप लगाए गए कि पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दबाव में झुक गए और वैष्णव का समर्थन कर दिया. वैष्णव 28 जून, 2019 को हुए इस राज्यसभा चुनाव से सिर्फ छह दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे.
भीषण चक्रवात के वक्त दिखाया था कौशल
प्रशासनिक सेवा में रहते हुए
अश्विनी वैष्णव न बालेश्वर और कटक जिलों के कलेक्टर की जिम्मेदारी निभाई. साल 1999 में आए भीषण चक्रवात के समय
उन्होंने बतौर नौकरशाह अपने कौशल का परिचय दिया और उनकी सूचना के आधार पर सरकार
त्वरित कदम उठा सकी जिससे बहुत सारे लोगों की जान बची.
#WATCH | Delhi: Ashwini Vaishnaw
takes charge as the Minister of Railways.#CabinetReshuffle pic.twitter.com/6zFvbT3luK
वाजपेयी के सचिव थे अश्विनी वैष्णव
वैष्णव ने 2003 तक ओडिशा में काम किया और फिर
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में उप सचिव नियुक्त हो गए.
वाजपेयी जब प्रधानमंत्री पद से हटे तो वैष्णव को उनका सचिव बनाया गया.
आईआईटी से पढ़ाई कर चुके वैष्णव
ने 2008
में सरकारी
नौकरी छोड़ दी और अमेरिका के व्हार्टन विश्वविद्यालय से एमबीए किया. वापस लौटने के
बाद उन्होंने कुछ बड़ी कंपनियों में नौकरी की और फिर गुजरात में ऑटो उपकरण की
विनिर्माण इकाइयां स्थापित कीं. इसी साल अप्रैल में उन्हें भारतीय प्रेस परिषद का
सदस्य नामित किया गया था.