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  • बंगाल की ताजा लड़ाई में ममता बनर्जी आखिर मोदी को लेकर हद क्यों पार कर गईं?
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2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी के प्रति काफी नरम रुख दिखा रहे हैं. लेकिन ममता बनर्जी हद से ज्यादा आक्रामक नजर आ रही हैं, और निजी हमले भी कर रही हैं - आखिर बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव क्यों किया है?

Written By newsonline | Ahmedabad | Published: 2024-04-05 16:26:45

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर ममता बनर्जी का एक विवादित बयान काफी चर्चा में हैं. बंगाल बीजेपी ने उस पर बेहद सख्त लहजे में रिएक्ट भी किया है, लेकिन मोदी के भाषण तो उसका कोई असर भी महसूस नहीं हो रहा है - एक ही दिन मोदी और ममता बनर्जी कीा राजनीतिक गतिविधियों में एक खास बात ये रही कि दोनों ही नेता पश्चिम बंगाल के कूचबिहार में मौजूद थे. 

ज्यादा दिन नहीं हुए जब लालू यादव ने मोदी के परिवार पर टिप्पणी की थी, और उस पर राष्ट्रीय स्तर पर जबरदस्त रिएक्शन हुआ. न सिर्फ मोदी ने खुद रिएक्ट किया, बल्कि ज्यादातर बीजेपी नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के साथ मोदी का परिवार भी लिख डाला है - लेकिन ममता बनर्जी ने मोदी को टारगेट करते हुए ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया जिसे गाली माना जाता है, तो भी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं. बल्कि, उससे ज्यादा बड़ी प्रतिक्रिया तो बीजेपी की तरफ से हेमामालिनी पर कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला की टिप्पणी पर सुनने को मिली है. 

मोदी के मामले में जो भी प्रतिक्रिया हुई है वो पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी की तरफ देखी गई. शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी का वो वीडियो स्पेशल इफेक्ट के साथ शेयर किया है, ताकि मोदी के लिए इस्तेमाल किये गये ममता बनर्जी के शब्द एक बार नहीं तो दूसरी और तीसरी बार में समझ में आ सके

प्रधानमंत्री मोदी का भी ज्यादा जोर संदेशखाली के मुद्दे पर ही दिखाई दे रहा है. वो महिला सुरक्षा और संदेशखाली के दोषियों को सजा दिलाने पर जोर दे रहे हैं - वो भी मोदी की गारंटी बता कर.  

हैरानी की बात तो ये है कि ममता बनर्जी की तरफ से महुआ मोइत्रा के मामले को भी चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन मोदी के पिछले दौरे में उसका भी जिक्र नहीं सुनाई दिया था. हां, महिलाओं के सम्मान को लेकर मोदी ने तृणमूल कांग्रेस को जरूर घेरा है. 

लोकसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस बंगाली अस्मिता का मुद्दा भी उछाल रही है, ऐसा लगता है कि विधानसभा चुनाव की तरह फिर से मोदी-शाह को बाहरी और गुजराती जोड़ी के रूप में पेश करने की कोशिश होगी. 

लेकिन मोदी और बीजेपी के बदले अंदाज के पीछे क्या वजह हो सकती है? कहीं 2021 की हार से कोई सबक तो नहीं मिला है, जिसकी वजह से मोदी फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं.

ममता के हद पार कर जाने की वजह क्या है?

कहने को तो रामलीला मैदान में विपक्ष की रैली में डेरेक ओ'ब्रायन ने दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस INDIA ब्लॉक में ही है, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो ऐसा बिलकुल नहीं है. पहले तो कांग्रेस को टीएमसी दो लोकसभा सीटें देने की बात भी कर रही थी, लेकिन बाद में उससे भी मुकर गई - और राहुल गांधी के न्याय यात्रा के साथ पश्चिम बंगाल में दाखिल होने से ठीक पहले ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया कि तृणमूल कांग्रेस अकेले दम पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. 

आखिर इस ऐलान के पीछे क्या कोई बड़ी वजह तो होगी ही. क्या ये ममता बनर्जी के अति आत्मविश्वास का नतीजा रहा? या कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर ममता बनर्जी के मन में किसी तरह का कोई डर था? या इसी बहाने बीजेपी और बंगाल के लोगों के ये संदेश देने की कोशिश थी कि ममता बनर्जी को बंगाल में किसी की बैसाखी की बिलकुल भी जरूरत नहीं है. 

ऐसी बातें कोई तभी करता है, जब उसे अपनेआप पर पूरा भरोसा हो, या फिर कहीं न कहीं मन में कोई डर हो जिसे छुपाने की कोशिश हो रही हो. 2019 के आम चुनाव में ममता बनर्जी ने 22 सीटें तो जीत ली थी, लेकिन बीजेपी को 18 सीटें जीतने से नहीं रोक पाई थीं. 

बेशक ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 100 सीटों तक भी पहुंचने नहीं दिया, लेकिन लोकसभा चुनाव का माहौल तो अलग होता ही है. और ये फर्क तो 2016 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना करने पर भी नजर आता है - और यही चीज 2024 के संभावित नतीजों की तरफ इशारा भी करती है. 

बड़ा सवाल ये है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो ममता बनर्जी पर कोई निजी हमला, और न ही सीधा हमला कर रहे हैं, फिर भी ममता बनर्जी इतनी आक्रामक क्यों हैं? कहीं ममता बनर्जी को ऐसा तो नहीं लग रहा है कि वो ऐसा करके ही विधानसभा चुनाव जीतने में सफल हुई थीं?

एक सार्वजनिक सभा में ममता बनर्जी केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाले राशन के पैकेट पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर का जिक्र करते हुए आपत्ति जता रही थीं. ममता बनर्जी को वो बात तो याद होगी ही कि 2021 में चुनाव आयोग ने शिकायत मिलने पर चुनावी राज्यों में कोविड के वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट से मोदी की तस्वीर हटाने का आदेश जारी कर दिया था. 

अगर ममता बनर्जी को आपत्ति है तो फिर से वैसी ही शिकायत चुनाव आयोग में दर्ज कराई जा सकती है, लेकिन इसके लिए मोदी को भला बुरा कहने की जरूरत क्यों आ पड़ी है - ऐसे मामलों अक्सर लेने के देने ही पड़ते हैं. और शायद बीजेपी नेतृत्व को इस बात का एहसास भी हो चुका है. 

बंगाल के लोगों से मुखातिब ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा था कि वो भूखी रहना पंसद करेंगी, लेकिन मोदी की तस्वीर वाले राशन नहीं खाएंगी - और इसी भाषण में मोदी के नाम से पहले ममता बनर्जी ने एक आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किया था, जिस पर प्रदेश बीजेपी ने खूब बवाल मचाया था. 

वैसे तो ममता बनर्जी जांच एजेंसियों के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठा रही हैं, और लोगों को अपनी तरफ से CAA-NRC के मुद्दे पर भरोसा भी दिला रही हैं, 'बंगाल तो मैं संभाल लूंगी... मेरे रहते उनकी हिम्मत नहीं कि बंगाल में रहने वालों को छू सकें... चुनाव से पहले सीएए लाया गया.' - और अपनी तरफ से आगाह भी कर रही हैं, 'आप जैसे ही रजिस्ट्रेशन के लिए अपना नाम दाखिल करेंगे वैसे ही आपको बांग्लादेशी घोषित कर दिया जाएगा.'

बंगाल में बदले बदले क्यों नजर आ रहे हैं मोदी?

ममता बनर्जी को भले ही लगता हो कि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ उनका आक्रामक अंदाज ही बीजेपी को बंगाल में पांव फैलाने से रोक सकता है, लेकिन बीजेपी अलग रणनीति पर काम करती लग रही है - ऐसा लगता है कि बीजेपी 2021 की गलतियों से सबक ले चुकी है, और नये सिरे से कोई जोखिम नहीं उठाना चाह रही है. 

ममता बनर्जी के प्रति मोदी का नरम रुख भी ऐसे ही इशारे कर रहा है. वरना, 2021 में तो मोदी के कई भाषणों की शुरुआत ही 'दीदी-ओ-दीदी' बोल कर हुआ करती थी. और बदले में तृणमूल कांग्रेस की तरफ से कहा जाता था, गो-मोदी-गो. 

कूचबिहार की रैली में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में कटाक्ष की मात्रा तो भरपूर थी, लेकिन अंदाज काफी बदला हुआ लगा, और जब ममता बनर्जी के प्रति आभार जताया तो आश्चर्य भी हुआ. 

एक पुरानी घटना की चर्चा करते हुए मोदी बोले, मैं सबसे पहले बंगाल की मुख्यमंत्री ममता दीदी का आभार व्यक्त करना चाहता हूं... 2019 में एक रैली को संबोधित करने के लिए मैं इसी मैदान पर आया था... उस समय इस मैदान को छोटा करने के लिए इसके बीच में उन्होंने एक मंच बनवा दिया था... तब मैंने कहा था कि जनता इसका जवाब देगी.

लेकिन इस बार, मोदी ने कहा, ऐसा कुछ नहीं किया... और मैदान खुला रखा... इसलिए मैं बंगाल सरकार का कोई रुकावट न करने के लिए आभार व्यक्त करता हूं. 

पिछले महीने चुनावों की घोषणा से पहले, लेकिन संदेशखाली पर मचे बवाल के बीच मोदी पश्चिम बंगाल के दौरे पर थे. तब प्रधानमंत्री के भाषण में महिला कल्याण, महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण से जुड़ी केंद्रीय योजनाओं को लागू न करने की बातें तो सुनाई दीं, लेकिन महुआ मोइत्रा वाला कैश-फॉर-क्वेरी प्रकरण नहीं सुनाई दिया. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बंगाल के विकास के लिए वहां बीजेपी का मजबूत होना बहुत जरूरी है. उनका कहना था, 'भाजपा ही है जो यहां माताओं-बहनों पर होने वाले अत्याचार को रोक सकती है... पूरे देश ने देखा है कि कैसे टीएमसी सरकार ने संदेशखाली के गुनहगारों को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी... भाजपा ने संकल्प लिया है कि वह संदेशखाली के दोषियों को सजा दिलवाकर ही रहेगी... उनको जेल में ही जिंदगी काटनी पड़ेगी.'

हाल ही की बात है, बीजेपी नेता दिलीप घोष को ममता बनर्जी पर विवादित टिप्पणी के लिए माफी मांगनी पड़ी थी - मतलब, बीजेपी 2021 की गलतियों से सीख चुकी है, और अब किसी भी सूरत में बंगाल में बिहार के डीएनए जैसा ब्लंडर नहीं होने देना चाहती है.