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  • Cabinet Expansion : जावड़ेकर, निशंक, प्रसाद, हर्षवर्धन... इन 12 मंत्रियों की टीम मोदी से विदाई की इनसाइड स्टोरी
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर वही किया, जिसके लिए वो जाने जाते हैं। उन्होंने हर्षवर्धन, प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद जैसे दिग्गज चेहरों को अपनी टीम से हटाकर मीडिया जगत से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक, सभी को चौंका दिया

Written By newsonline | Ahmedabad | Published: 2021-07-08 11:04:30

किसी ने इतनी बड़ी संख्या में और इतने बड़े कद के मंत्रियों के हटाए जाने की कल्पना नहीं की थी। लेकिन, यह तो सबको पता है कि वो मोदी हैं, कुछ भी कर सकते हैं। यह कहकर आश्चर्य को आम बताने का कारण ढूंढा जा रहा है। स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी सिर्फ हैरान करने के लिए तो अपनी ही टीम के इतने विकेट नहीं चटका दिए होंगे। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने मंत्रियों के परफॉर्मेंस को परखने में सवा महीने का लंबा वक्त लगाया, फिर जाकर छंटनी की लिस्ट तैयार की।

मंत्रियों को हटाए जाने के पीछे की वजह लक्ष्य पूरा करने की गति मंद होने से लेकर अपनी नीतियों और राजनीतिक लक्ष्यों से जनता को भरोसे में ले पाने में उनकी विफलता शामिल रही। खासकर, कोरोना काल में किस मंत्री का परफॉरमेंस कैसा रहा, यह उनके मंत्रिमंडल में रहने या जाने का एक बड़ा फैक्टर रहा। पिछले सवा महीने से पीएम मोदी पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ मिलकर हर मंत्री की परफॉरमेंस का रिव्यू कर रहे थे और सबका रिपोर्ट कार्ड भी तैयार किया गया। बहरहाल, अब कहा जा रहा है कि इतने बड़े चेहरों को कैबिनेट से खारिज किए जाने का मतलब है कि उनके लिए पार्टी संगठन में जगह बनाई जाएगी...

कोविड की दूसरी लहर ने ले ली बलि

स्वास्थ्य मंत्री: कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में देशभर में मचे हाहाकार ने मोदी सरकार की छवि को इतनी धूमिल कर दी जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। पहली बार ऐसा लगा कि मोदी सरकार की निष्क्रियता की वजह से लाखों मौतें हुईं। विपक्ष ने बेड और ऑक्सिजन की कमी से लेकर प्रबंधन के मोर्चे पर नाकामी को लेकर खूब हाय-तौबा मचाया। ऐसा भी लगा कि दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी का सारा ठीकरा केंद्र पर फोड़ दिया तब दिल्ली के ही नेता और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जरूरत के मुताबिक करारा जवाब नहीं दिया। ऐसे में केजरीवाल सरकार कहीं-न-कहीं यह जताने में कामयाब रही कि ऑक्सिजन की कमी के कारण हुई मौतों का एकमात्र जिम्मेदार केंद्र सरकार है, उसकी तरफ से कोई कमी नहीं थी।

ट्विटर विवाद से धूमिल हुई छवि

कानून मंत्री: रविशंकर प्रसाद के पास कानून और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का दो महत्वपूर्ण मंत्रालय था। उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ट्विटर के खिलाफ खूब बयानबाजी की। ट्विटर ने देश के नए आईटी कानून के तहत अधिकारियों की अनिवार्य नियुक्ति से आनाकानी की। एक तरफ ट्विटर कोर्ट चला गया तो दूसरी तरफ उसने खुद कानून मंत्री का अकाउंट ही ब्लॉक कर दिया। हालांकि, कुछ देर में ही प्रसाद का ट्विटर अकाउंट फिर से ऐक्टिव हो गया था, लेकिन इस बीच जो संदेश जाना चाहिए था, वो चला गया। संदेश यह कि एक अमेरिकी कंपनी ट्विटर, भारत सरकार को भी आंखें दिखा सकती है। स्वाभाविक है कि अपने इकबाल के लिए जानी जाने वाली मोदी सरकार की छवि को इस घटनाक्रम ने गहरी चोट पहुंचाई।

रविशंकर प्रसाद को मोदी सरकार में कितना महत्व दिया गया था, इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि वो अक्सर नीतिगत और राजनीतिक मुद्दों पर सरकार का पक्ष रखा करते थे। लेकिन, आईटी मिनिस्टर के रूप में टेलिकॉम सेक्टर की लंबित समस्याओं का टिकाऊ हल निकालने और भारतनेट प्रॉजेक्ट की रफ्तार बढ़ा पाने में नाकामी ने उनका विकेट डाउन करवा दिया।

शिक्षा क्षेत्र में सुधार की उम्मीद नहीं हुई पूरी

मानव संसाधन मंत्री: रमेश पोखरियाल 'निशंक' को मुख्य रूप से स्वास्थ्य समस्याओं के कारण मंत्री पद छोड़ना पड़ा है। उन्हें कोविड-19 महामारी हुई थी और वो इससे उबरने के बाद भी तरह-तरह की परेशानियों से गुजर रहे। उन्हें ठीक होने के बाद भी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। उनके कार्यकाल में नई शीक्षा नीति की रूपरेखा तो जरूर आ गई, लेकिन स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों में बदलाव के मोर्चे पर वो तेजी नहीं दिखी जिसकी उम्मीद की जा रही थी। ध्यान रहे कि मोदी सरकार ने बड़े सुधारों वाले क्षेत्र में शिक्षा को भी शामिल कर रखा है। हद तो यह कि मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से वित्तीय सहायता प्राप्त पत्रिकाओं में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार किया जा रहा था, लेकिन उन्हें लंबे समय तक भनक नहीं लगी और जब इसका पता भी चला तो वो तुरंत कार्रवाई भी नहीं कर सके।

सरकार का सही पक्ष नहीं रख पाए जावड़ेकर?

सूचना-प्रसारण मंत्री: सरकार के प्रवक्ता होने के नाते जावडेकर और उनके मंत्रालय की जिम्मेदारी थी कि वह कोरोना काल में सरकार की इमेज सही करने के लिए कदम उठाएं, लेकिन उनका मंत्रालय इसमें असफल रहा। देसी मीडिया के अलावा विदेशी मीडिया में भी सरकार की बहुत किरकिरी हुई और सीधे पीएम मोदी की इमेज पर असर पड़ा। जावडेकर की उम्र भी उनके हटने की एक वजह बताई जा रही है। वह 70 साल के हैं।

कोविड काल में दवाइयों की कमी और कर्नाटक की कलह बनी मुसीबत

रसायन एवं उर्वरक मंत्री: सदानंद गौड़ा का टीम मोदी से निष्कासन की कई वजहें हैं। कोविड की दूसरी लहर के दौरान जरूरी दवाइयों की आपूर्ति को लेकर हाहाकार मच गया। रेमडेसिविर के लिए तो लंबी-लंबी लाइनें लग गईं। वहीं, कर्नाटक बीजेपी की अंदरूनी कलह भी गौड़ा की विदाई की वजह बनी। वहां मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ एक धड़े ने मोर्चा खोल रखा है। केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक के निवासी के रूप में गौड़ा से अपेक्षा थी कि वो अपने प्रभाव के इस्तेमाल से प्रदेश बीजेपी की अंदरूनी खींचतान को खत्म कर पाते, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऊपर से मंत्री के रूप में उनका कामकाज भी बहुत संतोषजनक नहीं रहा। ऐसे में उन्हें हटाकर कर्नाटक से शोभा करंदलाजे को मोदी मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। करंदलाजे वोक्कालिगा समुदाय से हैं और येदियुरप्पा की समर्थक भी हैं।

प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर मोदी मायूस

श्रम मंत्री, स्वतंत्र प्रभार : गंगवार बतौर श्रम मंत्री कोविड काल में पलायन कर रहे श्रमिकों का उचित ख्याल नहीं रख पाए। इन श्रमिकों की मदद के लिए एक पोर्टल बनाने का ऐलान किया गया था जो आज तक लॉन्च नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर नाराजगी जाहिर कर चुका है। एक तरफ कामकाज के मोर्चे पर मायूसी तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा। प्रधानमंत्री मोदी इस बात से नाराज थे कि जब कोविड-19 की दूसरी लहर में चारों ओर त्राहि-त्राहि मच रही थी तब पार्टी को एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए था, लेकिन गंगवार ने इसके उलट अपने ही मुख्यमंत्री को घेरना शुरू कर दिया। उन्होंने योगी को चिट्ठी लिखकर उत्तर प्रदेश में कोविड के कुप्रबंधन का आरोप लगाया। गंगवार बतौर मंत्री भी वो अपने कामकाज से कुछ खास छाप छोड़ने में कामयाब नहीं रहे।

​रिपोर्ट कार्ड में कुछ खास न बता पाए ये मंत्री

संजय धोत्रे मानव संसाधन मंत्रालय में ही राज्य मंत्री थे। स्वाभाविक है कि मंत्रालय से प्रधानमंत्री की नाराजगी में वो भी निपट गए। उधर, प्रताप सारंगी, बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया, देबाश्री चौधरी जैसे मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को भेजे अपने रिपोर्ट कार्ड में कुछ गिना नहीं सके। स्वाभाविक है कि मोदी ऐसे मंत्रियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। प्रधानमंत्री ने यह माना कि इन सभी ने बतौर मंत्री मिले महत्वपूर्ण अवसर का फायदा नहीं उठाया और समाज में बदलाव को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई। बाबुल सुप्रियो तो बंगाल का विधानसभा चुनाव तक नहीं जीत सके। बंगाल में कुछ यही हाल देबाश्री चौधरी का भी कहा। यही वजह है कि इन दोनों को हटाकर बंगाल से चार नए चेहरों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है। बहरहाल, थावरचंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाकर मोदी कैबिनेट के सम्मानजनक विदाई दी गई है।