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  • क्या अखिलेश की साइकिल पर सवारी, शिवपाल यादव के लिए बन गई है मजबूरी?
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच दुश्मनी की जमी बर्फ पिघलने लगी है. परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए चाचा-भतीजे साथ आकर इटावा में बीजेपी को रोकने में कामयाब रहे और सपा जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध जीतने में सफल रही.

Written By newsonline | Ahmedabad | Published: 2021-07-02 11:23:54

उत्तर प्रदेश की सत्ता में समाजवादी पार्टी दोबारा से वापसी के लिए हरसंभव कोशिशों में जुट गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच दुश्मनी की जमी बर्फ पिघलने लगी है. परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए चाचा-भतीजे साथ आकर इटावा में बीजेपी को रोकने में कामयाब रहे और सपा जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध कराने में सफल रही. बता दें कि काफी समय से चाचा-भतीजे एक दूसरे प्रति नर्म रुख बनाए हुए हैं. 

दरअसल, पांच साल पहले 'मुलायम परिवार' में मची सियासी वर्चस्व के चलते शिवपाल यादव और उनके करीबी नेता सपा छोड़कर चले गए थे या फिर उन्हें सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को साथ लेने और सपा छोड़कर गए नेताओं की घर वापसी के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए हैं. पिछले एक साल में तमाम नेताओं की पार्टी में वापसी हो चुकी है और कुछ नेता की एंट्री होनी है. 

अखिलेश यादव ने हाल ही में आजतक को दिए इंटरव्यू में कहा था कि शिवपाल यादव की पार्टी को भी साथ में लिया जाएगा और उनके साथ गए नेताओं को भी एडजस्ट करने का काम करेंगे.  शिवपाल की जसवंतनगर सीट पर सपा अपना कैंडिडेट नहीं उतारेगी. वहीं, शिवपाल यादव भी 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से सपा के साथ गठबंधन करने का खुला ऑफर दे रहे थे. उन्होंने कहा था, '2022 में अगर सपा हमारे दल को सम्मानजनक सीटें देगी तो गठबंधन पर विचार होगा.'

मुलायम परिवार में साल 2017 के चुनाव से पहले सियासी अनबन छिड़ी तो शिवपाल यादव के करीबी नेताओं ने सपा को अलविदा कह कर दूसरी पार्टियों में चले गए थे. दिग्गज नेता नारद राय, विजय मिश्रा, राज किशोर सिंह, रामपाल यादव अंबिका चौधरी, भगवान शर्मा और मुकेश शर्मा ने बसपा का दामन थाम लिया था. रामलाल अकेला और महेंद्र उर्फ झीनू बाबू जैसे नेता सपा से बाहर होकर भी किसी पार्टी में नहीं गए. 

पूर्व मंत्री शादाब फातिमा, शारदा प्रताप शुक्ल, राम सिंह यादव और रघुराज शाक्य ने शिवपाल यादव के साथ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. शिवपाल यादव ने सपा के तमाम नेताओं को अपनी पार्टी के जिला अध्यक्ष की कमान सौंप दी. इस तरह से हर जिले में सपा दो धड़ों में बंट गई, लेकिन पार्टी का बड़ा तबका अशिलेश यादव के साथ रहा. 2019 के चुनाव में शिवपाल यादव ने फिरोजबाद संसदीय सीट से मैदान में उतरे और उन्होंने तमाम समर्थकों को भी अलग-अलग सीटों पर उतारा. 

शिवपाल यादव भले ही एक लाख वोट पाने में सफल रहे, लेकिन उनकी पार्टी के बाकी कैंडिडेट अपनी जमानत बचाना तो दूर की बात थी, 25 हजार वोट भी हासिल नहीं कर सके. इतना ही नहीं हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में इटावा छोड़कर बाकी जिलों में शिवपाल की पार्टी के जिला पंचायत सदस्य भी जीत नहीं सके. इतना ही नहीं यादव समाज के बीच अखिलेश यादव ही मुलायम के सिसासी वारिस बने. इसका सियासी असर यह रहा कि सपा छोड़कर जाने वाले नेताओं ने घर वापसी करना शुरू कर दी. 

जनवरी 2021 से जून 2021 तक लगभग 100 से ज्यादा नेता सपा का दामन थाम चुके हैं. नारद राय, रामलाल अकेला सपा में वापसी कर चुके हैं. अंबिका चौधरी के बेटे को सपा ने बलिया से जिला पंचायत अध्यक्ष का प्रत्याशी बना रखा है. अंबिका चौधरी भी बसपा छोड़ चुके हैं और माना जा रहा है कि जल्द ही सपा में एंट्री कर सकते हैं. अंबिका एक दौर में मुलायम की किचन कैबिनेट के प्रमुख माने जाते थे. 

शिवपाल के साथ सपा में गए एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिस उम्मीद के साथ पार्टी का गठन किया गया था, वो पूरा नहीं पा रहा है. ऐसे में सियासी भविष्य को लेकर संकट खड़ो हो गया है. हम सब ने सपा से सियासी जीवन शुरू किया है और दूसरी पार्टी में एडजस्ट नहीं हो सकते हैं. ऐसे में सभी चाहते हैं कि परिवार और पार्टी दोनों ही एक हो जाए. इसी में दोनों लोगों के लिए बेहतर है. 

शिवपाल क्या लेंगे फैसला

अखिलेश यादव के ऑफर के बाद शिवपाल यादव ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, लेकिन सपा नेताओं का कहना है कि चुनाव नजदीक आने दीजिए. पहले की तरह पार्टी और परिवार एक होकर चुनावी मैदान में उतरेंगे. हालांकि, शिवपाल यादव ने साफ कर दिया है कि वो अपनी पार्टी का सपा में विलय नहीं करेंगे, जिसके बाद अखिलेश ने गठबंधन का विकल्प भी दे दिया है. इतना ही नहीं शिवपाल के साथियों को भी अखिलेश ने कहा कि राजनीतिक परिस्थितियों में जीतने की स्थिति में होंगो तो पार्टी उन्हें भी चुनाव लड़ाएगी. 


हालांकि, मौजूदा सियासी माहौल में शिवपाल यादव के सामने कोई बड़ा सियासी ऑफर नजर नहीं आ रहा है. 2019 के चुनाव में हारने के बाद उनकी लोकप्रियता भी कम हुई है. इतना ही नहीं सूबे में जिस तरह से सपा मजबूत हुई है और दूसरी पार्टियों के नेताओं ने सपा का दामन थामा है और उनके करीबी नेताओं ने भी पार्टी में वापसी की है. ऐसे में शिवपाल के सामने अखिलेश की साइकिल पर सवारी करना मजबूरी बन गई है. ऐसे में अब सबकी निगाहें शिवपाल यादव की ओर लगी है कि वह कब घर वापसी करेंगे.