राजस्थान में गहलोत सरकार ने विधान परिषद के गठन को मंजूरी दे दी है। इसस पहले साल 2012 में इसे लेकर प्रस्ताव भेजा गया था।
जयपुर
राजस्थान में मंत्रिमण्डल विस्तार और राजनीतिक
नियुक्तियों से पहले सूबे की गहलोत सरकार ने एक बड़ा सियासी फैसला ले लिया है।
गहलोत सरकार ने विधान परिषद के गठन को मंजूरी दे दी है। राजस्थान में चल रहे
सियासी घमासान के बीच इसे सीएम गहलोत का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। हालांकि इस
निर्णय को लेने के बाद इसकी प्रक्रिया को पूरा होने में समय लग सकता है, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार की ओर से विधानमंडल बनाकर जहां
अधिक संख्या में मंत्री बनाकर सरकार के अंदरूनी असंतोष को खत्म करने की कोशिश की
जाएगी। वहीं इसे सियासी घमासान को थामने के नए फॉर्मूले के तौर पर भी देखा जा रहा
है।
डेमेज कंट्रोल के मूड
में सरकार
जानकारों की मानें, तो प्रदेश में लंबे समय से चले आ
रहे सियासी घमासान को अब सरकार खत्म करना चाहती है, क्योंकि देखने में यही आ रहा है कि
कि मंत्रिमण्डल विस्तार ना होने को लेकर गहलोत- पायलट दोनों खेमे के विधायक
प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से विरोध के स्वर ऊंचे कर रहे है। वहीं अब इस घमासान को
थामने के लिए गहलोत कैबिनेट की ओर से विधानपरिषद का प्रस्ताव पारित किया है।
सियासी खलबली को कंट्रोल करने के लिए सरकार की ओर से तबादलों पर रोक हटाने के बाद
निर्णय को भी बड़े दांव के रूप में देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ समय
पहले विधायकों की ओर से यह कह गया था कि वो अपने क्षेत्र के लोगों के ट्रांसफर तक
नहीं करवा पा रहे हैं।
2012 से लंबित है मामला
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में मंत्रीपरिषद ने फैसला लिया है
कि राज्य विधानसभा के आगामी सत्र में संकल्प पारित करवा कर संसद में भेजा जाएगा।
वहां से मंजूरी शीघ्र कराने के प्रयास होंगे। शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने
बताया कि विधानपरिषद बनाए जाने को लेकर आगामी दिनों में प्रक्रिया तेज होगी।
उन्होंने कहा कि साल 2012 में
भी इस संबंध में संकल्प पारित किया गया था, वह अभी लंबित है।
चुनौतीपूर्ण फैसला, क्योंकि 40 साल में किसी राज्य को नहीं मिली
मंजूरी
हालांकि सरकार की ओर से विधानपरिषद को लेकर प्रस्ताव भेजने
के संबंध में मंजूरी दे दी गई है। लेकिन यह निर्णय कब तक साकार हो सकेगा, कहा
नहीं जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये ऐसी संवैधानिक प्रक्रिया है जिसे पूरा होने
में सालों भी लग सकते हैं। वहीं दूसरा यह है कि विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव
प्रदेश में पहली बार पारित नहीं हुआ है, इससे पहले 2008 में
वसुंधरा सरकार और 2012 में
गहलोत सरकार ने प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। 2012 में प्रस्ताव के विधानसभा में
पारित होने के बाद संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने सुझावों के संबंध में राज्य सरकार
से राय मांगी थी , करीब
9 साल
बाद राज्य सरकार इस मामले में राय भेज रही है। जानकारों का कहना है कि विधान परिषद
बनाने का प्रस्ताव राज्य सरकारें विधानसभा में तो पास कर देती हैं, लेकिन
ये संसद में आकर अटक जाता है। आपको बता दें कि असम की विधानसभा ने 2010 में
और राजस्थान विधानसभा ने 2012 में
राज्य में विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पास किया था, लेकिन
दोनों ही राज्यों का ये बिल राज्यसभा में अटका हुआ है।
इन राज्यों में विधान परिषद
अभी देश के 6 राज्यों में विधान परिषद है. इनमें
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार
और उत्तर प्रदेश है। पहले जम्मू-कश्मीर में भी विधान परिषद थी, लेकिन
केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद उसकी मान्यता खत्म हो गई। अभी जिन 6 राज्यों
में विधान परिषद है, उनमें
से तीन राज्यों के मुख्यमंत्री इसी सदन के सदस्य हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ विधान परिषद के सदस्य हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे
और बिहार के सीएम नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य हैं।नीतीश कुमार तो जब से
मुख्यमंत्री बने हैं, तभी
से विधान परिषद के सदस्य हैं।