प्रदेश कांग्रेस समिति चीफ अमित चावडा, कांग्रेस विधानसभा दल (सीएलपी) नेता परेश धनानी, ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के गुजरात इन्चार्ज राजीव साटव की नियुक्ति के समय से ही पार्टी में कलह जारी है। इससे कोरोना की गंभीर स्थिति के बीच 'भगवा मॉडल' सरकार पर उठने वाली उंगलियों से फोकस शिफ्ट करने में मदद मिल गई।
अहमदाबाद
गुजरात में आगामी राज्यसभा चुनावों से पहले कांग्रेसी खेमे में
हलचल मची हुई है। एकतरफ बीजेपी कथित तौर पर विधायकों की
तोड़फोड़ में लगी है तो वहीं गुजरात कांग्रेस को अंदरूनी पॉलिटिक्स का नुकसान भी हो रहा है। सूत्रों के
मुताबिक इसके पीछे राहुल गांधी की पसंद के तीन नेताओं की तिकड़ी की वजह से बाकी नेताओं
में असंतोष है, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है।
बीजेपी ने कांग्रेस में जारी
अंदरूनी कलह का फायदा उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के
गृहराज्य में कोरोना वायरस संक्रमण की गंभीर स्थिति के बीच 'भगवा मॉडल' सरकार पर उठने वाली उंगलियों
से फोकस शिफ्ट करने में मदद मिल गई। इसके साथ ही नवंबर में होने वाले आगामी निकाय
चुनावों से पहले राज्यसभा चुनावों का इस्तेमाल भी करने का मौका मिल गया।
युवा वफादार
नेताओं को आगे बढ़ाने का दांव पड़ा उल्टा?
गुजरात में ये तीन नेता प्रदेश कांग्रेस समिति चीफ अमित चावड़ा
(43), कांग्रेस विधानसभा दल (सीएलपी) नेता परेश धनानी (43),
ऑल
इंडिया कांग्रेस कमिटी के गुजरात इन्चार्ज राजीव साटव (45) हैं। राहुल गांधी ने 'लाइटवेट' वफादार नेताओं को आगे बढ़ने
के उद्देश्य से इन तीनों को महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी दी थी। गुजरात विधानसभा
चुनावों के बाद तत्कालीन पीसीसी चीफ भरतसिंह सोलंकी ने इस्तीफा दे दिया था। वहीं
सीएलपी नेता शक्ति सिंह गोहिल अपनी सीट से हार गए थे। ऐसे में राहुल गांधी को
चावड़ा और धनानी को नियुक्त करने का मौका मिल गया। लेकिन सिद्धार्थ पटेल, नरेश रावल, कुंवरजी बावलिया और अर्जुन
मोढवाडिया जैसे सीनियर नेताओं की भी उपेक्षा की गई।
पीएम मोदी और अमित
शाह के गृह प्रदेश में कांग्रेस को संगठित करने के लिए तीन युवा चेहरों को आगे लाए
जाने के इस फैसले ने सभी को चौंका दिया था। अहमद पटेल जैसे कद्दावर नेता को भी
साइडलाइन किया गया। इन तीनों की नियुक्ति से पहले दिसंबर 2017
के
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी।
लगातार शिकायत
के बावजूद राहुल देते रहे संरक्षण
इस फैसले से पार्टी में असंतोष फैल गया और गुजरात कांग्रेस कोर
समिति के 30 से अधिक सदस्यों ने अक्टूबर 2018
में
दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की। इस दौरान राहुल की पसंद की 'तिकड़ी' के एकपक्षीय फैसलों को लेकर
शिकायत की गई। राहुल ने ऐक्शन लेने का भरोसा दिया लेकिन तीनों को संरक्षण देना
जारी रखा। पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में कई लोगों की नापसंद के बावजूद
उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया।
पिछले विधानसभा
से अब तक 16 विधायक छोड़ चुके हैं कांग्रेस
लोकसभा चुनावों के दौरान ही पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने
आ गई थी। राहुल की इस तिकड़ी में ही आपसी फूट उस समय नजर आई, जब पीसीसी और सीएलपी चीफ ने
एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। पार्टी के अंदरूनी झगड़े में यह नया
ट्विस्ट था। पिछले विधानसभा चुनावों से लेकर अभी तक कांग्रेस के 16 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं।
कोरोना से
शिफ्ट हुआ फोकस, बीजेपी के 1 तीर से 2 निशाने
हालांकि कलह सामने आने पर कांग्रेस की तरफ से दिल्ली और अन्य
जगहों से कुछ बड़े नेताओं को गुजरात भी भेजा गया। लेकिन कई लोगों का मानना है कि
स्थिति अब नियंत्रण से आगे जा चुकी है। अभी कांग्रेस के कुछ और विधायकों के पाला
बदलने की गुंजाइश है। गुजरात में कोरोना की गंभीर महामारी के बीच नैरेटिव बदलने की
सत्तारूढ़ बीजेपी की कोशिश और उसके पास मौजूद संसाधनों को देखते हुए यह मुश्किल भी
नहीं नजर आ रहा है।