शाहरुख, रणबीर, रानी मुखर्जी, नाना पाटेकर जैसे तमाम बड़े कलाकारों को एक्टिंग सिखाने वाली महाराष्ट्र की संगीता गाला खुद सुन नहीं सकती और ना ठीक से बोल सकती हैं. लेकिन फिर भी अपना बॉलीवुड का सपना किया पूरा.
शाहरुख ,रणबीर, रानी मुखर्जी और नाना पाटेकर जैसे
तमाम बड़े कलाकारों को एक्टिंग सिखाने वाली महाराष्ट्र की संगीता गाला खुद सुन नहीं
सकती और ना ठीक से बोल सकती हैं. लेकिन फिर भी अपना बॉलीवुड का सपना किया पूरा और
बन गई एक मिसाल. देवदास,
बर्फी, खामोशी, ब्लैक, गुजारिश, सांवरिया और रामलीला जैसी दर्जनों फिल्म में किरदारों को उनकी सांकेतिक
भाषा को समझने और किरदार में ढलने में मदद करती महाराष्ट्र की संगीता गाला ने आजतक
से शेयर की अपने ख्वाबों के पूरा होने की कहानी.
बॉलीवुड के जाने माने फिल्म मेकर्स को है संगीता के काम पर नाज
कहते हैं
जब हौसले बुलंद हों और राह सही मिल जाए तो दुनिया में खुद को साबित किया जा सकता
है. महाराष्ट्र की संगीता गाला की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. ठीक से न बोल पाना और
कानों से पूरी तरह से कुछ न सुनाई देने के बावजूद आज संगीता गाला बॉलीवुड फिल्म
इंडस्ट्री का जाना-माना नाम हैं. संगीता बताती हैं की बचपन से उन्हें हिंदी
फिल्में बहुत पसंद थीं. ये बहुत कलरफुल होती हैं. कहानी गाने सब मुझे पसंद थे.
लेकिन लोग सोचते थे कि मेरे लिए ये सब बेकार है. मैं बॉलीवुड के लिए बनी ही नहीं
हूं. लेकिन आज देखिए इसी बॉलीवुड ने मुझे मेरी असली पहचान दी और इतना प्यार और काम
दिया. इसके लिए मैं सबकी आभारी हूं.
संजय लीला भंसाली, अनुराग बसु और अनुराग कश्यप की
फिल्मों में कलाकारों को सिखाई साइन लैंग्वेज
अपने करियर
की शुरुआत पर चर्चा करते हुए संगीताअपने लिखित इंटरव्यू में कहती हैं मेरे करियर
की सबसे पहली फिल्म सलमान-मनीषा स्टारर खामोशी थी जो साल 1996 में आई थी. मुझे याद है कि जब मैं
फिल्म के लिए गई तो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हियरिंग हैंडीकैप के विभागीय अफसर की तरफ
से मुझे रिजेक्ट कर दिया गया था. लेकिन वो फिल्म मेरी किस्मत में लिखी थी. नाना
पाटेकर सर ने मेरी प्रतिभा को जांच लिया और मुझे खामोशी के लिए रिकमेंड किया.
फिल्म में मैंने नाना पाटेकर, सीमा बिस्वास और मनीषा कोइराला को सांकेतिक भाषा सिखाई और सबने अपने
किरदार को बखूबी निभाया. साथ ही मेरे काम की भी प्रशंसा की गई.
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मेरा बेटा भी मेरे साथ सेट पर जाया करता था और नाना और सीमा जी के बेटे के किरदार के लिए भी एक छोटे बच्चे की संजय सर तलाश कर रहे थे. तो उन्होंने मेरे बेटे को ही वो रोल करने का ऑफर कर दिया. तो कुछ इस तरह शुरू हुआ मेरा फिल्मी सफर. इसके बाद मैंने संजय लीला भंसाली के साथ ब्लैक, शाहरुख खान संग देवदास, सांवरिया, रामलीला और गुजारिश में भी काम किया. इनके अलावा अनुराग बसु की रणबीर कपूर स्टारर सुपरहिट फिल्म बर्फी और अनुराग कश्यप की फिल्म मुक्केबाज में भी संगीता ने कलाकारों को साइन लैंग्वेज सीखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
बचपन में लोग उड़ते थे मजाक लगता
था बुरा
मेरे पिता एक किसान थे. वैसे तो हम गुजरात के रहने वाले हैं लेकिन मेरे पिता जी कम उम्र में ही मुंबई चले आए थे और बहुत स्ट्रगल किया. बचपन में ही जब उन्हें पता चला की मैं दूसरे बच्चों की तरह नहीं बोल सकती और ना ही सुन सकती हूं फिर भी मेरे माता-पिता ने मुझे कोई कमी महसूस नहीं होने दी. मुझे अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया और मुझे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने भेजा.
घरवालों ने कभी नहीं होने दिया
हौसला कम
डॉक्टर्स
कहते थे कि मुझे डिस्लेक्सिया नाम की बीमारी भी है. आगे चल कर मुझे बोलने में बहुत
दिक्कत आएगी. लोग ना जाने क्या-क्या कहा करते थे. मेरे और मेरे भविष्य के बारे में.
कुछ तो मजाक भी उड़ाते थे. लेकिन फिर भी मेरे घरवालों ने कभी भी मेरा हौसला कम
नहीं होने दिया. मेरी मां हर कदम पर मेरी आवाज बन जाया करती थीं और मेरे पिता
हमेशा मेरा सुरक्षा कवच. वो मुझे ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे. इसलिए मेरी
कमजोरियां मुझ पर हावी न हो जाएं. वे हर वक्त मेरे साथ खड़े रहे. इसलिए मैं कहना
चाहूंगी कि कोई भी अपने ख्वाब पूरे कर सकता है. बस इसके लिए सच्ची लगन और मेहनत
चाहिए. इन दिनों मैं मूक और बधिर समुदाय के तमाम ऐसे होनहार लोगों के डेटाबेस
इकट्ठा करने में लगी हूं जो फिल्म उद्योग में बाकी वर्कर्स की तरह समान अधिकार के
साथ काम कर सकें और अपनी प्रतिभा सबके सामने ला सकें.